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About Video - अथ राग काफी | Ath Raag Kafi | Amargranth Sahib by Sant Rampal Ji Maharaj
अथ राग काफी | Ath Raag Kafi | Amargranth Sahib by Sant Rampal Ji Maharaj
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नहीं है दारमदारा उहां तो, नहीं है दारमदारा।। टेक।।
उस दरगह में धर्मराय है, लेखा लेगा सारा।।1।।
मुल्ला कूकै बंग सुनावै, ना बहरा करतारा।।2।।
तीसौं रोजे खूंन करत हो, क्योंकर होवे दीदारा।।3।।
मूल गंवाय चले हो काजी, भर लिया घोर अंघारा।।4।।
भवजल बूड़ गये हो भाई, कीजैगा मुँह कारा।।5।।
बेद पढैं पर भेद न जानैं, बांचैं पुरान अठारा।।6।।
जड़ कूँ अंधरा पान खवावै, बिसरे सृजनहारा।।7।।
ऊजड़ खेड़े बहुत बसाये, बकरा झोटा मारा।।8।।
जा कूँ तो तुम मुक्ति कहत हो, सो हैं कच्चे बारा।।9।।
मांस मछलिया खाते पांडे, किस बिधि रहै आचारा।।10।।
स्यौं यजमानें नरक में चाले, बूड़े स्यूं परिवारा।।11।।
छाती तोड़ैं हनें यम किंकर, लागै यमदूतों का लारा।।12।।
दास गरीब कहै बे काजी पांडे, ना कहीं वार न पारा।।13।।1।।
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क्या गावै घर दूर दिवानें, क्या गावै घर दूर।। टेक।।
अनलहक्क सरे कूँ पौंहची, सूली चढ़े मनसूर।।1।।
शेख फरीद कुँए में लटके, हो गये चूरम चूर।।2।।
सुलतानी तज गये बलख कूँ, छोड़ी सोलह सहंसर हूर।।3।।
गोपीचंद भरथरी योगी, सिर में डारी धूर।।4।।
दादू दास सदा मतवारे, झिलमिल झिलमिल नूर।।5।।
जन रैदास और कमाला, सनमुख मिले कबीर हजूर।।6।।
दोन्यौं दीन मुक्ति कूँ चाहैं, खावैं गऊ और सूर।।7।।
दास गरीब उधार नहीं है, सौदा पूरम्पूर।।8।।2।।
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मैं तो दें दी ए बाल्यम याणें नू।। टेक।।
गीता और भागवत पढ़ै, नहीं बूझै शब्द ठिकानें नूं।।1।।
मन मथुरा दिल द्वारका नगरी, कहाँ फिरे बरसानें नूं।।2।।
जब फुरमांन धनी का आवै, कौन राखै घर जानें नूं।।3।।
जा सतगुरु का शरणा लीजै, मेटै यम तलबानें नूं।।4।।
उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम, फिरदा दाणें दाणें नू।।5।।
सर्व कला सतगुरु साहिब की, हरि आये हरियाणें नूं।।6।।
जम किंकर का राज कठिन है, नहीं छोड़ै राजा राणें नूं।।7।।
याह दुनिया दा जीवन झूठा, भूल गये मर जानें नूं।।8।।
शील संतोष विवेक विचारो, दूर करो जुल्माणें नूं।।9।।
ज्ञान दा राछ ध्यान दी तुरिया, कोई जानैं पाण रिसाणें नूं।।10।।
महल कपाट सतगुरु नैं खोले, अमी महारस खानें नूं।।11।।
गरीबदास सुन्न भंवर उड़ावै, गगन मंडल रमजाणें नूं।।12।।9।।
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मैं तो दें दी ए बाल्यम बहरे नूं।। टेक।।
संसारी दी गल्लां चीन्हैं, नहीं बूझै शब्द जो गहरे नूं।।1।।
मुर्दों सेती प्रीत लगावै, नहीं जानैं सतगुरु महरे नूं।।2।।
सेत छत्र सिर मुकट बिराजै, देखत ना उस चेहरे नूं।।3।।
ऊंची थलियाँ खेती बोवैं, भूल गये निज डहरे नूं।।4।।
यौह संसार समझदा नांहीं, कहंदा श्याम दुपहरे नूं।।5।।
गरीबदास यौह बखत जात है, रोवोगे इस पहरे नूं।।6।।12।।
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मैं तो दें दी ए बाल्यम गूंगे नूं।। टेक।।
जा बाल्यम दी बलि बलि जावां, ध्यान लगावै ऊँगे नूं।।1।।
छोड़या मूल फूल क्या तोड़ै, कहा चढावै सूंघे नूं।।2।।
दूध गऊ दा बच्छा पी गया, कहा कढावै चूंघे नूं।।3।।
याह जीव देही विनश जात है, बहुर आनियौं भूंगे नूं।।4।।
ये तन देही हाथ न आवै, क्या करैगा रूंगे नूं।।5।।
नघ नारायन भूल रह्या है, क्या परखै मोती मूंगे नूं।।6।।
गरीबदास यौं शाखा सूकै, बीज न बोया ढूंगे नूं।।7।।13।।
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मैं तो दें दी ए बाल्यम झूठे नूं।। टेक।।
सायर सीप समुंद्र ल्याये, कहा कर है मोती फूटे नूं।।1।।
कालर खेत निपजदा नांहीं, क्या कर है बहु जल बूठे नूं।।2।।
भांग तमाखू मदिरा पीवैं, छोड़त ना इस ठूठे नूं।।3।।
मेहर महोब्बत छानी नांहीं, सब जानैं सतगुरु टूठे नूं।।4।।
प्रेम पियाले सद मतवाले, पीवत हैं रस घूँटे नूं।।5।।
दिल दरिया में बाग लगाया, सींचत हैं उस बूटे नूं।।6।।
उस दरगह में मुकलस कर है, जो फेरै यम के लूटे नूं।।7।।
गरीबदास दरहाल मनावै, राजी कर है सतगुरु रूठे नूं।।8।।14।।
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खान पान कुछ करदा नांहीं, है महबूब आचारी वो।। टेक।।
कौंम छत्तीस रीत सब दुनिया, सब से रहै विचारी वो।।1।।
बेपरवाह शाहन पति शाहं, जिन याह धारना धारी वो।।2।।
अनतोल्या अनमोल्या देवै, करोड़ी लाख हजारी वो।।3।।
अरब खरब और लील पदम लग, संखौं संख भंडारी वो।।4।।
जो सेवै ताही कूँ खेवै, भवजल पार उतारी वो।।5।।
सुरति निरति गल बंधन डोरी, पावै बिरह अजारी वो।।6।।
ब्रह्मा विष्णु महेश सरीखे, ताहि उठावैं झारी वो।।7।।
शेष सहंसमुख करै बिनती, हरदम बारंबारी वो।।8।।
शब्द अतीत अनाहद पद है, है पुरूष निराधारी वो।।9।।
सूक्ष्म रूप स्वरूप समाना, खेलै अधर आधारी वो।।10।।
जाकूँ कहैं कबीर जुलाहा, रचि सकल संसारी वो।।11।।
गरीबदास शरणागत आये, साहिब लटक बिहारी वो।।12।।24।।
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साहिब से चित लाय रे मन गर्ब गुमानी।। टेक।।
नाभि कमल में नीर जमाया, तेरा दीन्हा महल बनाय। नीचै जठरा अग्नि जरै थी, लगी न ताती बाय।।1।।
नैन नाक मुख द्वारा देही, नक षिक साज बनाय। नौ दस मास गर्भ में राख्या, उहां तेरी करी सहाय।।2।।
दंत नहीं जद दूध दिया था, अमी महारस खाय। नीचै शीश चरण ऊपर कूँ, औह दिन याद कराय।।3।।
बाहर आया भ्रम भुलाया, बाजैं तूर सहनाय। तुंहीं तुंहीं तैं छोड़ दिया है, चल्या अधम किस राहय।।4।।
दाई आई घूंटी प्याई, माता गोद खिलाय। जो दिन आज सो काल्य नहीं रे, आगै है धर्मराय।।5।।
द्वादश बर्ष खेलते बीते, फिर लिया ब्याह कराय। तरुणी नारी से घरबारी, चाल्या मूल गंवाय।।6।।
रात्यौं सोवै जन्म बिगोवै, द्यौंहदी खेत कमाय। बिना बंदगी बाद बहत है, तेरा जन्म अकराज जाय।।7।।
कारे काग गये घर अपने, बैठे सेत बुगाय। दांत जाड़ तेरे उखड़ गये हैं, रसना गई तुतराय।।8।।.......
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मन मगन भया जब क्या गावै।। टेक।।
ये गुण इंद्री दमन करैगा, वस्तु अमोलक सो पावै।।1।।
त्रिलोकी की इच्छा छोडै़, जग में विचरै निर्दावै।।2।।
तरतीव्र बैराग धार कै, जग में जीवित मर जावै।।3।।
अधर सिंघासन अविचल आसन, जहां वहां सुरति ठहरावै।।4।।
उलटी सुलटी निरति निरंतर, बाहर से भीतर ल्यावै।।5।।
त्रिकुटी महल में सेज बिछी है, द्वादश दर अंदर छिप जावै।।6।।
अजर अमर निज मूरति सूरति, ॐ सोहं दम ध्यावै।।7।।
सकल मनोरथ पूर्ण साहिब, अबिगत पुरूष कबीर कहावै।।8।।....
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