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About Video - हंस परमहंस की कथा | Hans Paramhans ki Katha | Amargranth Sahib by Sant Rampal Ji Maharaj
हंस परमहंस की कथा | Hans Paramhans ki Katha | Amargranth Sahib by Sant Rampal Ji Maharaj
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अदली जोग झीनी बस्तु अचल अनरागी, जाका ध्यान धरो बड़ भागी। बटक बीज का योह बिस्तारा, जासैं उपज्या सकल पसारा।।1।।
सोहं शब्द हम जग में ल्याया। सार शब्द हम गुप्त छिपाया। पूछो ब्रह्मा, बिष्णु, महेशा।।
तीहूं देवा का ना उपदेशा ॐ सोहं मांड मंडी है, जा कै ऊपर सार शब्द गढी है।।2।।
बटक बीज है हमरै मांही, हम हैं बटक बीज की छांही।। 3।।
सोहं ब्रह्मा सोहं इन्द्र, सोहं हैं भगवानं चन्द। सोहं शंकर सोहं शेष, सोहं का सोहं उपदेश।। 4।।
सोहं चैबीसौं अवतार, सोहं का है सब परिवार। सोहं रावण सोहं राम,ॐ सोहं जपिये नाम ।। 5।।
सोहं कंस केशि चानौर, सोहं की है ऊंची पौर। सोहं दुर्योधन और पण्ड, सोहं ठाराह खूहनि खण्ड।।6।।
सोहं राजा चकवै रीति, सोहं की सोहं प्रतीति। सोहं है चैरासी सिद्ध, सोहं सूर गऊ और गद्ध ।। 7।।
सोहं सुरनर मुनिवर जान, सोहं का है सकल जिहान। सोहं का है मुनिवर मेल, ॐ सोहं का सब खेल।। 8।।
सोहं गोपी सोहं कान्ह, सोहं हंसा सब घट जान्ह। सोहं है सब कीट पतंग, सोहं चैरसी लख संग ।।9।।
सोहं चन्दा सोहं सूर, ॐ सोहं बाजैं तूर। सोहं कच्छ मच्छ कूरम्भ, ॐ सोहं सत आरम्भ।।10।।
सोहं धर अम्बर आकाश, सोहं पांच तत्त का बास। सोहं सहंस अठासी दीप, सोहं मोती ॐ सीप।।11।।
सोहं स्वांति बूंद प्रकाश, ॐ में सोहं का बास। ॐ चैदा भवन बिचार, ॐ में है सोहं तार।।12।।
ॐ काया मरि मरि जाय, सोहं फिर फिर गोते खाय। ॐ मारै ॐ मरै, सोहं लख चैरासी फिरै।।13।।
ॐ सोहं की सब बाजी, सोहं पण्डित सोहं काजी। सोहं धर्मराय सत कहिये, सोहं चित्रागुप्त सो लहिये।।14।।
सोहं आगै ॐ लेखा, सोहं गुप्त प्रकट सब देखा। धर्म सोहं तप कीन्हा भारी, पुरुष पृृथ्वी दीन्ही सारी।।15।।
सोहं राज अदल है भाई, ॐ उत्पत्ति प्रलय जाई। ॐ सोहं की है काया, सोहं जीव ॐ है माया।।16।।
ओम् बहिश्त बैकुण्ठ सब साजैं, जामें सोहं जाय बिराजैं। ओम् बिनशै सोहं गिरै, तातैं ओम् में कोपरै।।17।।
सोहं सुरनर पण्डित ज्ञानी, सब घट ओम् की पहरानी। ओम् आदि मूल है भाई, सोहं बास मध्य ठहराई।।18।।
बिनशै फूल बासना जीवै, ऐसैं ज्ञान बिहंगम पीवै। अलल पंख ज्यूं करै बिचारा, उलटा जाय मिलै परिबारा।।19।।
सार शब्दसैं सोहं खिर्या, तातैं लख चैरासी फिर्या। मध्य ओम् की है एक टाटी, हंस बिछोरै बारह बाटी।।20।।
सोहं गदह हो हो जाई, सोहं इन्द्र हुये बहुर्राइ । सोहं रामचंद्र अवतारा, सोहं आंन भये नौबारा।।21।।
सोहं लक्ष्मण सोहं सीता, सोहं कीन्हा सोहं मीता। सोहं मन ओम् है देहि, दोहूं, सें न्यारा शब्द सनेही।।22।।
सोहं नारी सोहं पुरुषा, सोहं हिन्दू सोहं तुरका। सोहं कौम छतीसौं जाती, ॐ सोहं की उत्पाती।।23।।
सप्त अण्ड पर सोहं साजै, जापर सार शब्द धुनि गाजै। सोहं जल थल महियल मेला, सोहं गुरुवा सोहं चेला।।24।।
एक सोहं ओम् धरि पूज्या, सार शब्द का भेद न सूझ्या। सोहं चतुर्भुजी एक कर्ता, सोहं ओम् चोले धरता।।25।।
ओम् नाना रूप बिचारी, सोहं ॐ की है तारी। सोहं अक्षर खण्ड है भाई, निःअक्षर का भेद न पाई।।26।।
सोहं में थे ध्रुव प्रहलादा, ओम् सोहं बाद बिबादा। सोहं गोरख सोहं दत, ओम् सोहं मध्य है सत्त।।27।।
सोहं जनक बिदेही सेवा, पीछै जान्या पदका भेवा। सोहं शुकदेव कूं गुरु कीन्हा, पीछै सार शब्द सत चीन्हा।।28।।
पीवब्रत कूं सोहं सत जान्या, ओम् मांही रहे विमाना। ग्यारह अरब किया तप हंसा, चीन्हे नहीं शब्द परम हंसा।।29।।
रामानन्द ओम् की आशा, तातैं खण्डी सोहं श्वासा। सप्त अंग धरवाई देही, जब जा पाये शब्द सनेही।।30।।
नामा छीपी ओम् तारी, पीछे सोहं भेद बिचारी। सार शब्द पाया जदि लोई, आबागवन बहुरि ना होई।।31।।
सोहं सुलतानी प्रवाना, सोहं बाजीदा दरबाना। सोहं सूजा सैंना जपंते, सोहं पीपा धना लखंते।।32।।
सोहं जाप जप्या रैदासा, सोहं ओम् परि शब्द निबासा। सोहं सार शब्द धुनि लागी, आवा गवन मिटी अनुरागी।।33।।
सोहं भरथरि गोपीचंदा, सोहं ऊपर अजब अनंदा। आनंदी सौं लाग्या नेहा, बहुरि न हंसा धरि है देहा।।34।।
अजामेल गणिका से त्यारे, होते अघ पपौं शिर भारे। सदना जाति कर्साइ खूनी, सतगुरु तार पलटया पूनी ।।35।।
दुर्बासा सोहं संग राते, तातैं इन्द्र्पुरी सुर जाते। अनंत लोक सोहं का ताना, धर्म राय एक हाकिम आना ।।36।।
माया आदि निरंजन र्भाइ, अपने जाये आपै र्खाइ । ब्रह्मा बिष्णु महेश्वर चेला, ओम् सोहंका है खेला ।।37।।
शिखर शुन्य में धर्म अन्यायी, जिन शक्ति डायन महल पर्ठाइ । लाख ग्रासै नित उठि दूती, माया आदि तख्त की कूती।।38।।
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